प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
सिंधु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता
(Harappan Civilization)
प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
अथवा
सिन्धु सभ्यता के विभिन्न स्थलों की भौगोलिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सिन्धु सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इस सभ्यता के लिए साधारणतः तीन नामों का प्रयोग होता है- सिन्धु सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता। इन तीनों शब्दों का एक ही अर्थ है। इनमें से प्रत्येक शब्द की एक विशिष्ट पृष्ठभूमि है। शुरू-शुरू में 1921 में जब पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा स्थल पर इस सभ्यता का पता चला और अगले ही वर्ष एक अन्य प्रमुख स्थल मोहनजोदड़ो की खोज हुई, तब यह सोचा गया कि यह सभ्यता अनिवार्यतः सिन्धु घाटी तक ही सीमित थी। अतः इस सभ्यता का संकेत देने के लिए 'सिन्धु घाटी की सभ्यता' शब्दावली का प्रयोग शुरू हुआ। परन्तु बाद के वर्षों के अनुसंधान से जब यह प्रमाणित हो गया कि यह सभ्यता स्वयं सिन्धु घाटी की सीमाओं के पार दूर-दूर तक फैली थी (उदाहरण के लिए यह गुजरात जैसे इलाकों तक फैली थी) तब इस सभ्यता के सही भौगोलिक विस्तार का संकेत देने के लिए उक्त शब्दावली अपर्याप्त सिद्ध हुई।
अतः इसके लिए 'हड़प्पा सभ्यता' जैसे गैर-भौगोलिक शब्द के प्रयोग का निर्णय लिया गया। दूसरे शब्दों में हड़प्पा स्थल के नाम पर (जहाँ शुरू-शुरू में इस सभ्यता को पहचाना गया था) स्वयं इस सभ्यता का नामकरण उस स्थल के नाम पर कर दिया जाता है जहाँ पहले-पहल उसे पहचाना जाता है 'हड़प्पा सभ्यता' शब्द का प्रयोग करते समय इसका अध्ययन करने वाले पुरातत्ववेत्ता केवल प्रचलित प्रथा का अनुसरण कर रहे थे।
सिन्धु सभ्यता का भौगोलिक विस्तार और प्रमुख बस्तियों के नाम सिन्धु सभ्यता के स्थल अब निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं-
1. बलूचिस्तान - यहाँ के स्थल साधारणतः व्यापार मार्गों के साथ-साथ पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि. मकरान तट प्रदेश (बलूचिस्तान तट प्रदेश का नाम ) पर ऐसे अनेक स्थल हैं। यहाँ दो भौगोलिक तत्व महत्वपूर्ण हैं पहला, इस इलाके में अनेक नदियाँ समुद्र में मिलती हैं। इन नदियों का मुहाना सुविधाजनक स्थान माना जा सकता है। दूसरे, प्रागैतिहासिक काल में इस इलाके का समुद्र भूमि की ओर बढ़ा हुआ था। इसका मतलब यह है कि आज जो बस्तियाँ समुद्र से कुछ मील दूर पर पाई जाती हैं, वे समुद्र के किनारे पर थी। अतः इन बस्तियों को दुहरा लाभ प्राप्त था क्योंकि ये नदी के मुहाने पर भी स्थित थी और समुद्र के किनारे पर भी। पुरातात्विक दृष्टि से इनमें अग्रिलिखित स्थल महत्वपूर्ण हैं- सूत कागेंडोर (दाश्क नदी के मुहाने पर), सोतका कोह ( शादी कोर के मुहाने पर)। ये तटीय स्थल साधारणतः फारस की खाड़ी जैसे इलाकों से समुद्री मार्ग पर बन्दरगाह माने जाते हैं। कुछ स्थल बलूचिस्तान की भूमि पर भी मिलते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी बलूचिस्तान में डाबरकोट अफगानिस्तान जाने वाले रास्ते पर स्थित है। किरथार पर्वत श्रेणी के पार दरों के मुहानों पर भी कुछ स्थल हैं। यह पर्वत श्रेणी निचली सिन्धु घाटी या सिंध को बलूचिस्तान से अलग करती है। इस तरह का एक महत्वपूर्ण स्थल मूला दर्रे के मुहाने पर पठानी दंब है।
2. उत्तर पश्चिमी सीमान्त - यहाँ सारी सामग्री गोमल घाटी में केन्द्रित प्रतीत होती है, जो अफगानिस्तान जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है। गूमला जैसे स्थलों पर सिन्धु-पूर्व सभ्यता निक्षेपों के ऊपर सिन्धु सभ्यता के अवशेष प्राप्त होते हैं।
3. सिन्धु - सिन्धु में वस्तुतः सिन्धु के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर अनेक स्थल मिलते हैं। ऐसा सम्भव है कि सिन्धु नदी का मार्ग बदलते रहने के कारण इसके किनारे के अनेक स्थल नष्ट हो गए हैं। कुछ स्थल शायद बाढ़ वाले मैदान में बाढ़ की मिट्टी के बढ़ते हुए निक्षेप के कारण नीचे दब गए होंगे। इनमें कुछ स्थल प्रसिद्ध हैं, जैसे कि मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, जुडेरजोदड़ो ( कच्छी मैदान में जोकि सी, बी और जैकोबाबाद के बीच सिन्धु की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार है। सिन्धु के मुहाने पर कोई स्थल नहीं है। सम्भवतः कभी समुद्र भूमि की ओर फैला हुआ था।
4. पश्चिमी पंजाब - इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा स्थल नहीं हैं। इसका कारण समझ में नहीं आता। हो सकता है कि पंजाब की नदियों ने अपना मार्ग बदलते-बदलते कुछ स्थलों को नष्ट कर दिया हो। इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल हड़प्पा है, जो रावी में सूखे हुए मार्ग पर स्थित है।
5. बहावलपुर - यहाँ के स्थल सूखी हुई सरस्वती नदी के मार्ग पर हैं। इस मार्ग का स्थानीय नाम 'हकरा' है। इस इलाके में अनेक सिन्धु सभ्यता के स्थल मिले हैं जिनमें से कुछ बहुत बड़े हैं। परन्तु इस क्षेत्र में अभी किसी स्थल का उत्खनन नहीं हुआ है। एक स्थल का नाम कुडवाला थेर है जो प्रकटतः बहुत बड़ा है।
6. राजस्थान - यहाँ के स्थल बहावलपुर के स्थलों के निरन्तर क्रम में हैं जो प्राचीन सरस्वती नदी के सूखे हुए मार्ग के साथ-साथ फैले हैं। इस इलाके में इस नदी को घग्गर कहा जाता है। कुछ स्थल प्राचीन दृषद्वती नदी के सूखे हुए मार्ग के साथ-साथ भी हैं जिसे अब चौतांग नदी कहा जाता है। इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल कालीबंगा है। राजस्थान के समस्त सिन्धु सभ्यता स्थल वस्तुतः आधुनिक गंगानगर जिले में आते हैं।
7. हरियाणा - आधुनिक हरियाणा में अनेक सिंधु सभ्यता स्थलों का पता चला है। इनमें एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थल जिला हिसार से बनवाती है। ये सभी स्थल घग्गर और उसकी सहायक नदियों की घाटी में सिन्धु सभ्यता स्थलों के सामान्य वितरण का हिस्सा है।
8. पूर्वी पंजाब - इस क्षेत्र में भी अनेक स्थल व्यापक रूप में मिलते हैं जो नदी घाटियों के साथ-साथ फैले हैं और शिमला की तराई तक चले गए हैं। एक महत्वपूर्ण स्थल रोपड़ है, जबकि एक अन्य स्थल संघोल का उत्खनन हाल ही में किया गया है। हाल ही में चंडीगढ़ नगर में भी हड़प्पा संस्कृति के निक्षेप पाए गए हैं।
9. गंगा-यमुना दोआब - यहाँ के स्थल जिला मेरठ के आलमगीरपुर तक फैले हैं। एक स्थल जिला सहारनपुर में हुलास है, जिसका उत्खनन हाल ही में किया गया है। दोआब के ऊपरी हिस्से में भी कई सारे स्थल हैं।
10. जम्मू - इस क्षेत्र से केवल एक स्थल का विवरण मिला है। इस स्थल का नाम माँदा है जोकि अखनूर के निकट है।
11. गुजरात कच्छ - और काठियावाड़ प्रायद्वीप में तथा गुजरात की मुख्य भूमि पर अनेक सिंधु सभ्यता स्थल हैं। कच्छ में प्रमुख सुरकोतदा है, जिसका उत्खनन किया जा चुका है। काठियावाड़ में लोथल प्रसिद्ध है। गुजरात की मुख्य भूमि पर धुर दक्षिण का स्थल भगतराव है जो किम सागर संगम पर है।
12. उत्तरी अफगानिस्तान - यह बात जान लेनी चाहिए कि उत्तरी अफगानिस्तान सिन्धु सभ्यता के वितरण क्षेत्र में नहीं आता परन्तु शोतगाइ नामक स्थान पर ठेठ सिन्धु सभ्यता के मृद्भांड मिले हैं। यह संभव है कि उत्तरी अफगानिस्तान में कुछ सिन्धु सभ्यता की बस्तियाँ रही हो क्योंकि उत्तरी अफगानिस्तान से लाजर्वद मणि तथा मध्य एशिया टिन का आयात होता था।
संक्षेप में सिन्धु सभ्यता पश्चिम में मकरान तट प्रदेश पर सुतकागेंडोर से पूर्व में जिला मेरठ के आलमगीर तक, और उत्तर में जम्मू के माँदा से लेकर दक्षिण में किम सागर संगम पर भगतराव तक फैली थी। समस्त समकालीन सभ्यताओं में सिन्धु सभ्यता निःसन्देह सबसे विस्तृत थी। क्षेत्र की दृष्टि से यह मिस्र या सुमेरियाई सभ्यता से कहीं विशाल थी। सिन्धु सभ्यता स्थलों की कुल संख्या अब 350 तक पहुँच गई है।
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- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
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- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
- प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।